Lekhika Ranchi

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काजर की कोठरी--आचार्य देवकीनंदन खत्री


काजर की कोठरी : खंड-3

रात दो घंटे से ज्यादे नहीं रह गई है। दरभंगा के बाजारों की रौनक अभी मौजूद है, मगर घटती जाती है। हाँ उस बाजार की रौनक कुछ दूसरे ही ढंग पर पलटा खा रही है, जो रंडियों की आबादी से विशेष संबंध रखती है, अर्थात उनके निचले खंड की रौनक से ऊपरवाले खंड की रौनक ज्यादे होती जा रही है।

इस उपन्यास के इस बयान में हमको इसी बाजार से कुछ मतलब है, क्योंकि उस बाँदी रंडी का मकान भी इसी बाजार में है, जिसका जिक्र इस किस्से के पहले और दूसरे बयान में आ चुका है। बाँदी का मकान तीन मरातब का है और उसमें जाने के लिए दो रास्ते हैं, एक तो बाजार की तरफ से और दूसरा पिछवाड़े वाली अंधेरी गली में से।

पहली मरातब में बाजार की तरफ एक बहुत बड़ा कमरा और दोनों तरफ दो कोठरियाँ तथा उन कोठरियों में से दूसरी कोठरियों में जाने का रास्ता बना हुआ है और पिछवाड़े की तरफ केवल पाँच दर का एक दालान है। दूसरी मरातब पर चारों कोनों में चार कोठरियाँ और बीच में चारों तरफ छोटे-छोटे चार कमरे हैं। तीसरी मरातब पर केवल एक बँगला और बाकी का मैदान अर्थात खुली छत है।

इस समय हम बाँदी को इसी तीसरी मरातबवाले बँगले में बैठे देखते हैं। उसके पास एक आदमी और भी है, जिसकी उम्र लगभग पच्चीस वर्ष होगी। कद लंबा, रंग गोरा, चेहरा कुछ खूबसूरत, बड़ी-बड़ी आँखें, (मगर पुतलियों का स्थान स्याह होने के बदले कुछ नीलापन लिए हुए था) भवें दोनों नाक के ऊपर से मिली हुईं, पेशानी सुकड़ी, सर के बाल बड़े-बड़े मगर घुँघराले हैं। बदन के कपड़े–पायजामा, चपकन, रूमाल इत्यादि यद्यपि मामूली ढंग के हैं मगर साफ हैं, हाँ, सिर पर कलाबत्तू कोर का बनारसी दुपट्टा बाँधे हैं, जिससे उसकी ओछी तथा फैल सूफ तबीयत का पता लगता है। यह शख्स बाँदी के पास एक बड़े तकिये के सहारे झुका हुआ मीठी-मीठी बातें कर रहा है।

इस बँगले की सजावट भी बिलकुल मामूली और सादे ढंग की है। जमीन पर गुदगुदा फर्श और छोटे-बड़े कई रंग के बीस-पच्चीस तकिये पड़े हुए हैं, दीवार में केवल एक जोड़ी दीवारगीर भी लगी है, जिसमें रंगीन पानी के गिलास की रोशनी हो रही है। बाँदी इस समय बड़े प्रेम से उस नौजवान की तरफ झुकी हुई बातें कर रही है।

नौजवान : मैं तुम्हारे सर की कसम खाकर कहता हूँ, क्योंकि इस दुनिया में मैं तुमसे बढ़कर किसी को नहीं मानता।

बाँदी : (एक लंबी साँस लेकर) हम लोगों के यहाँ जितने आदमी आते हैं सभी लंबी-लंबी कसमें खाया करते हैं, मगर मुझे उन कसमों की कुछ परवाह नहीं रहती, परंतु तुम्हारी कसमें मेरे कलेजे पर लिखी जाती हैं, क्योंकि मैं तुम्हें सच्चे दिल से प्यार करती हूँ।

नौजवान : यही हाल मेरा है। मुझे इस बात का खयाल हरदम बना रहता है कि बाप-माँ, भाई-बिरादर, देवता-धर्म सबसे बिगड़ जाए तो बिगड़ जाए मगर तुमसे किसी तरह कभी बिगड़ने या झूठे बनने की नौबत न आवे। सच तो यों है कि मैं तुम्हारे हाथ बिक गया हूँ, बल्कि अपनी खुशी और जिंदगी को तुम्हारे ऊपर न्यौछावर कर चुका हूँ और केवल तुम्हारा ही भरोसा रखता हूँ।

देखो, अबकी दफे मेरी माँ सचमुच मेरी दुश्मन हो गई, मगर मैंने उसका कुछ भी खयाल न किया, हाथ लगी रकम के लौटाने का इरादा भी मन में न आने दिया और तुम्हारी खातिर यहाँ तक ला ही छोड़ा। अभी तो मैं कुछ कह नहीं सकता, हाँ, अगर ईश्वर मेरी सुन लेगा और तुम्हारी मेहनत ठिकाने लग जाएगी तो मैं तुम्हें माला-माल कर दूँगा।

बाँदी : मैं तुम्हारी ही कसम खाकर कहती हूँ कि मुझे धन-दौलत का कुछ भी खयाल नहीं। मैं तो केवल तुमको चाहती हूँ और तुम्हारे लिए जान तक देने को तैयार हूँ मगर क्या करूँ मेरी अम्मा बड़ी चांडालिन है। वह एक दिन भी मुझे रुलाए बिना नहीं रहती। अभी कल की बात है कि दोपहर के समय मैं इसी बँगले में बैठी हुई तुम्हें याद कर रही थी, खाना-पीना कुछ भी नहीं किया था, चार-पाँच-दफे मेरी अम्मा कह चुकी थीं मगर मैंने पेट-दर्द का बहाना करके टाल दिया था।

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